Madhu varma

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लेखनी कविता -दीवाली - बालस्वरूप राही

दीवाली / बालस्वरूप राही


रात अमावस्या की काली
बड़ी डराने वाली,
मानव ने अपनी मेहनत से
चाँदी-सी चमका ली।

जहाँ न पहुँचे रवि की किरणे
छाया हो अँधियारा,
फैला देते नन्हें दीपक
वहाँ-वहाँ उजियारा।

झूठे का मुँह काला हो तो
छाती छटा निराली,
जब भी जीत सत्य की होती
मानती है दीवाली।

कभी न बनकर रावण
थोथे चने सरीखे बजना,
राम न बन पाओं तो भैया,
बन हनुमान गरजना !

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