लेखनी कविता -दीवाली - बालस्वरूप राही
दीवाली / बालस्वरूप राही
रात अमावस्या की काली
बड़ी डराने वाली,
मानव ने अपनी मेहनत से
चाँदी-सी चमका ली।
जहाँ न पहुँचे रवि की किरणे
छाया हो अँधियारा,
फैला देते नन्हें दीपक
वहाँ-वहाँ उजियारा।
झूठे का मुँह काला हो तो
छाती छटा निराली,
जब भी जीत सत्य की होती
मानती है दीवाली।
कभी न बनकर रावण
थोथे चने सरीखे बजना,
राम न बन पाओं तो भैया,
बन हनुमान गरजना !